सुबह सैर को चल दिए, कविवर का आनंद
नियमित बेईमान थे नियमों के पाबंद
नियमों के पाबंद ने इक दिन काम निकाला
पैसे लेजा पैसे देकर काम कराला
दूजा बोला कवि हो या हो भ्रष्टाचारी
बोले इसपर भी लिक्खूंगा कविता प्यारी
-संजय ग्रोवर
*पागलखाना* ==== बचकाना, अहमकाना, बेवकूफ़ाना, जाहिलाना, फ़लसफ़ाना, फ़लाना, ढिकाना....सब कुछ अनियोजित, अनियंत्रित, अनियमित, अघोषित....जब हमें ही कुछ नहीं पता तो आपको कैसे बताएं कि हम क्या करने वाले हैं....
सुबह सैर को चल दिए, कविवर का आनंद
नियमित बेईमान थे नियमों के पाबंद
नियमों के पाबंद ने इक दिन काम निकाला
पैसे लेजा पैसे देकर काम कराला
दूजा बोला कवि हो या हो भ्रष्टाचारी
बोले इसपर भी लिक्खूंगा कविता प्यारी
-संजय ग्रोवर
लोगों को बताया गया कि कुछ न कुछ करते रहो, ख़ाली मत बैठो नही तो
पागल हो जाओगे.
शताब्दियां बीत गई पर लोगों की खोपड़ियों में से यह बात नहीं निकली.
अब वे भले पागलपन करते रहें पर ख़ाली कभी नहीं बैठते.
-संजय ग्रोवर