बुधवार, 20 अगस्त 2014

महसूस तो करो

मैंने उसे ख़ाली कप दिया और कहा,‘‘लो, चाय पियो।’’

वह परेशान-सा लगा, बोला, ‘‘मगर इसमें चाय कहां है, यह तो ख़ाली है!’’

‘‘चाय है, आप महसूस तो करो।’’

‘‘आज कैसी बातें कर रहे हो, मैं ऐसे मज़ाक़ के मूड में बिलकुल नहीं हूं !?’’

‘‘मज़ाक़ कैसा ? क्या ईश्वर मज़ाक़ है ? ईश्वर ने ही मुझे आदेश दिया है कि मेरे माननेवालों को बिलकुल मेरे जैसी चाय दो जिसका न कोई रंग हो, न गंध हो, न कोई आकार हो, न स्वाद हो, न पेट भरता हो, न ताज़ग़ी आती हो, न बीमारी मिटती हो.............लब्बो-लुआब यह कि जिससे कुछ भी न होता हो मगर फिर भी महसूस होती हो.....आप महसूस तो करो!’’

‘‘ईश्वर ने तुम्हे आदेश दिया, तुमसे बात की! कैसे की ?’’

‘‘जैसे तुमसे करता है।’’

‘‘छोड़ो, क्या बकवास ले बैठे........’’

‘‘ईश्वर की बात तुम्हे बकवास लगती है!? ईश्वर ने मुझसे कहा कि मुझे माननेवालों को सब कुछ ऐसा करना चाहिए जिससे लोग मुझे बेहतर ढंग से महसूस करें ; वे कपड़े भी ऐसे पहनें जो दिखें या न दिखें मगर महसूस हों, वे ऐसे मकानों में रहें जिनका पता भी किसीको न दिया जा सके मगर उन्हें महसूस हो कि वे मकान में रह रहे हैं, इससे ज़्यादा से ज़्यादा लोग मुझे महसूस कर पाएंगे....ईश्वर ने मुझसे यह भी कहा कि जो चीज़ें मेरे जैसी नहीं हैं यानि कि साफ़ दिखाई पड़तीं हैं और लोगों के काम आती हैं वे सब मेरे मानने वाले मुझे न माननेवालों को दे दें क्योंकि वे महसूस नहीं कर सकते इसलिए उन्हें सचमुच की चीज़ें चाहिएं........’’

‘‘क्या अनाप-शनाप बोल रहे हो! तुम कब ईश्वर को मानते हो?’’

‘‘हां मैं नहीं मानता मगर तुम साबित करके दिखाओ कि मैं नहीं मानता.....’’

-संजय ग्रोवर
19-08-2014

ब्लॉग आर्काइव