सोमवार, 19 अक्तूबर 2015

आसमान से गिरी रे हड्डी

ग़ज़ल

आसमान से गिरी रे हड्डी
बच्च कबड्डी बच्च कबड्डी

गंग में थूके जमन में मूते
मांएं घिस-घिस धोएं चड्ढी

इसे टीपकर, उसे चाटकर
हुई जवां नोटों की गड्डी

चचा-ताऊ सब लूट ले गए
ताली-सीटी भरें फिसड्डी

आधी इसकी, आधी उसकी
गिरी कटोरे में जो हड्डी

-संजय ग्रोवर
19-10-2015


शनिवार, 17 अक्तूबर 2015

शाम को दोनों वहीं मिलेंगे

ग़ज़ल़

उनका इनसे समझौता है
घिन का घिन से समझौता है
13-07-2014

ज़रा चुभाना, बड़ा दिखाना
ख़ून का पिन से समझौता है

इधर भी छुरियां, उधर भी छुरियां
और मक्खन से समझौता है
17-10-2015

नामुमकिन कुछ कहां रहा अब
सब मुमक़िन है, समझौता है

शाम को दोनों वहीं मिलेंगे
रात का दिन से समझौता है
13-07-2014




-संजय ग्रोवर
17-10-2015



सोमवार, 12 अक्तूबर 2015

समझे!

लघुव्यंग्य

बेईमान झगड़ रहे थे।
ईमानदार चक्कर में आ गया।
बेईमानों ने समझाया कि हममें से किसी एक के पक्ष में नारा लगाओ।
उसने कहा पहले देख तो लूं, कौन सच्चा है ?
उन्होंने कहा सच्चा-वच्चा छोड़, हम जो कहते हैं वो कर, मेरी तरफ़ नही तो उनकी तरफ़ हो जा, बस किसी तरफ़ हो जा।
और अगर मैं किसीकी भी तरफ़ न होऊं तो।
तो हम तुझे किसी एक का अंधा समर्थक घोषित कर देंगे और मिलकर पीटेंगे, समझा।
समझ गया।

-संजय ग्रोवर

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