शुक्रवार, 29 जनवरी 2016

मुक्ति

लघुव्यंग्यकथा

‘लोग मुझे परेशान करते थे, हर कोई सताता था, पत्थर मारते थे, ग़ालियां देते थे, भगा देते थे, ज़िंदगी बड़ी कठिन थी, जीना दुश्वार था, लंबे संघर्ष के बाद मुझे आखि़रकार एक रास्ता सूझ गया......

‘क्या ?’

‘मैं भी उन्हींमें शामिल हो गया हूं, उनके साथ मिलकर पत्थरमार करता हूं......

‘उन्होंने तुम्हे आसानी से शामिल होने दिया !?’

‘नहीं, पहले उन्होंने जांचा-परखा, जब उन्हें विश्वास हो गया कि मेरी कई आदतें बिलकुल उन्हीं के जैसी हैं, मैं उनके काम का आदमी हूं तो......

‘अब तुम सब मिल-जुलकर किसपर पत्थरमार करते हो, किस-किसपर करोगे ?’

‘उनपर जो हमारे जैसे नहीं हैं, हम उन्हें अपने जैसा बनाकर छोड़ेंगे, सबको हमारे जैसा बनना होगा........... 

अंततः उसने अपनी मुट्ठी खोल दी जिसमें एक तराशा हुआ ठस और ठोस पत्थर मौजूद था।

-संजय ग्रोवर

29-01-2016


गुरुवार, 21 जनवरी 2016

चालू-प्रेरित चमत्कारी क्रांतियों के ऐतिहासिक वर्णन का अचानक हाथ लग गया एक हिस्सा...

इसे भरेगा
उसे भरेगा
चालू आदमी 
क्रांति करेगा

क्रांति से पहले
रोल बदलेगा
क्रांति से पहले
पोल बदलेगा

चालू आदमी
क्रांति करेगा

अपना दाग़
उसपे थोपेगा
उसके सोग को
अपना कहेगा

चालू आदमी
क्रांति करेगा


इधर से इसको
आगे करेगा
उधर से उसको 
आगे करेगा

चालू आदमी
क्रांति करेगा

इधर भी पीछे
पीछे चलेगा
उधर भी पीछे
पीछे चलेगा

चालू आदमी
क्रांति करेगा

इधर भी इसका
दुश्मन मरेगा
उधर भी इसका 
दुश्मन मरेगा

चालू आदमी
क्रांति करेगा

आखि़र विजय-जुलूस
बहेगा
चालू आदमी
नेतृत्व करेगा
गोद भरेगा
गद्दी भरेगा
वंस अगेन वो
श्रेष्ठ रहेगा

चालू आदमी
क्रांति करेगा

-संजय ग्रोवर
21-01-2016


गुरुवार, 7 जनवरी 2016

नया हिटलर नये विरोधी नया इतिहास

छोटा-सा व्यंग्य

इतिहास पढ़ने में मेरी कभी दिलचस्पी नहीं रही। हां, कोई बता दे, बात रोचक या महत्वपूर्ण हो तो सुन लेता हूं। वैसे, थोड़ा दिमाग़ लड़ाएं तो, सामने घट रही घटनाओं से भी इतिहास का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।

अब जैसे कि मुझे लग रहा है कि हिटलर जिन्हें गैस-चैम्बर कहता था दरअसल वो टीवी स्टूडियो थे। जिसे वह प्रताड़ना कहता था वह दरअसल टीवी डिबेट होती थी जिसमें उसके विरोधियों को मजबूरन ख़ुशी-ख़ुशी भाग लेना पड़ता था। वे तो बेचारे आना नहीं चाहते थे क्योंकि वे जानते थे कि 
डिबेट का अच्छा-ख़ासा प्रचार होगा और उनके बड़े-बड़े रंगीन विज़ुअल दिखाकर उन्हें हीरो बनाया जाएगा, मगर हिटलर अपने स्टूडियो की आरामदायक वैन भेजकर जबरन उन्हें घर से उठवा लेता था।

इससे उसके विरोधियों को बड़ा कष्ट होता था और वे ख़ुशी के मारे मर जाते थे।


-संजय ग्रोवर
07-01-2016
(पूर्णतया काल्पनिक ठीक वैसे ही जैसे प्रायोजित बहसें)

ब्लॉग आर्काइव