रविवार, 17 नवंबर 2019

बधाई


‘बड़ी अच्छी  जुगाड लगाई यार तूने, ंि दी  कादमी में लग गया! बधाई हो!’
‘तू भी तो हुर्दू कादमी में फ़िट हो गया, तुझे भी बधाई!’
‘इसी को तो कहते हैं ं गा-अमुना संस्कृति’
‘अब तो पारदर्शिता का ज़माना है, अब तो हम खुलकर इसे कह सकते हैं
-ॉग्रेस-ीजेपी संस्कृति’! 

सोमवार, 5 अगस्त 2019

दुनियादारी


लघुकथा

कुछ सफल लोग आए कि आओ तुम्हे दुनियादारी सिखाएं, व्यापार समझाएं, होशियारी सिखाएं।

और मुझे बेईमानी सिखाने लगे।

अगर मुझे बचपन से अंदाज़ा न होता कि दुनियादारी क्या है तो मेरी आंखें हैरत से फट जातीं।

-संजय ग्रोवर

05-08-2019


शनिवार, 20 अप्रैल 2019

ऐन वक़्त पर होता है

ग़ज़ल

कोई छुपकर रोता है
अकसर ऐसा होता है

दर्द बड़ा ही ज़ालिम है
ऐन वक़्त पर होता है








शेर अभी कमअक़्ल है ना
अभी नहीं मुंह धोता है

तुम ही कुछ कर जाओ ना
वक़्त मतलबी, सोता है

वो मर्दाना नहीं रहा
यूं वो खुलकर रोता है
-संजय ग्रोवर

सोमवार, 25 मार्च 2019

सचके बारे में झूठ क्या बोलूं

ग़ज़ल

ये तो हारा हुआ घराना है
इस ज़माने को क्या हराना है

ये तो बचपन से मैंने देखा है
ये ज़माना भी क्या ज़माना है

वक़्त से दोस्ती करो कैसे
वक़्त का क्या कोई ठिकाना है

सच का हुलिया ज़रा बयान करो
सच को सच से मुझे मिलाना है

सचके बारे में झूठ क्या बोलूं
सच भी झूठों के काम आना है

सचसे बच्चों को डराता है तमाम
झूठ भी कितना वहशियाना है

मेरा जो सच है, मेरा अपना है
इसको झूठा नहीं बनाना है 

-संजय ग्रोवर
26-03-2019

सोमवार, 14 जनवरी 2019

मंदिर-मस्ज़िद यहीं बना लो, मंज़र बड़ा रुहानी है

Photo by Sanjay Grover


चांद से चिट्ठी आई है के दुनिया आनी-जानी है 
मंदिर-मस्ज़िद यहीं बना लो, मंज़र बड़ा रुहानी है

गांधीजी का नाम रटो हो, पहने हो जैकेट और कोट
लंगोटी के नाम पे फिर क्यूं मरी तुम्हारी नानी है

आधी-पौनी दिखे सचाई,समझा ख़ुदको ज्ञानी है
अंधे कैसे होते होंगे गर ये दुनिया कानी है

सभी हुक़ूमत करना चाहें इल्मी-फ़िल्मी-राजा लोग
गांधी जैसी बात चले तो-‘बस इक रोटी खानी है’

ईद और करवाचौथ करो हो, देख-देखके चांद का मुह
आज ही क्यों ना चांद पे जाओ, ये दुनिया तो फ़ानी है


-संजय ग्रोवर
15-01-2019



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