ग़ज़ल
ये तो हारा हुआ घराना है
इस ज़माने को क्या हराना है
ये तो बचपन से मैंने देखा है
ये ज़माना भी क्या ज़माना है
वक़्त से दोस्ती करो कैसे
वक़्त का क्या कोई ठिकाना है
सच का हुलिया ज़रा बयान करो
सच को सच से मुझे मिलाना है
सचके बारे में झूठ क्या बोलूं
सच भी झूठों के काम आना है
सचसे बच्चों को डराता है तमाम
झूठ भी कितना वहशियाना है
मेरा जो सच है, मेरा अपना है
इसको झूठा नहीं बनाना है
-संजय ग्रोवर
26-03-2019
ये तो हारा हुआ घराना है
इस ज़माने को क्या हराना है
ये तो बचपन से मैंने देखा है
ये ज़माना भी क्या ज़माना है
वक़्त से दोस्ती करो कैसे
वक़्त का क्या कोई ठिकाना है
सच का हुलिया ज़रा बयान करो
सच को सच से मुझे मिलाना है
सचके बारे में झूठ क्या बोलूं
सच भी झूठों के काम आना है
सचसे बच्चों को डराता है तमाम
झूठ भी कितना वहशियाना है
मेरा जो सच है, मेरा अपना है
इसको झूठा नहीं बनाना है
-संजय ग्रोवर
26-03-2019
मेरा जो सच है, मेरा अपना है
जवाब देंहटाएंयकीनन ...
सुंदर रचना
बहुत शुक्रिया वर्माजी
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