रविवार, 13 नवंबर 2022

पाबंद का छंद

सुबह सैर को चल दिए, कविवर का आनंद

नियमित बेईमान थे नियमों के पाबंद


नियमों के पाबंद ने इक दिन काम निकाला

पैसे लेजा पैसे देकर काम कराला 


दूजा बोला कवि  हो या हो भ्रष्टाचारी

बोले इसपर भी लिक्खूंगा कविता प्यारी


-संजय ग्रोवर




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