गुरुवार, 25 जून 2015

गुरुवार, 11 जून 2015

जाली बनाम अदृश्य सर्टीफ़िकेट

जाली सर्टिफ़िकेट देने का सबसे ज़्यादा चलन साहित्य में रहा है। ये सर्टीफ़िकेट और इन्हें जारी करनेवाली संस्थाएं अमूर्त्त क़िस्म की होतीं हैं। इन अमूर्त्त सर्टीफ़िकेटों को ‘आर्शीवाद’, ‘हौसला-अफ़ज़ाई’, ‘पुरस्कार’, ‘समीक्षा’, ‘प्रोत्साहन’ जैसे नामों के तहत जारी किया जाता है।

इसकी मूलप्रेरणा सर्टीफ़िकेटजारीकर्त्ताओं को ‘अपना आदमी’, ‘ख़्याल रखनेवाला आदमी’, ‘सहयोग करनेवाला आदमी’, ‘अपनी बिरादरी का आदमी’, ‘अपने जैसा आदमी’, 
‘मिलते-जुलते रहने वाला आदमी‘, ‘सबसे पटाके रखनेवाला आदमी’, ‘इस हाथ ले, उस हाथ दे वाला आदमी’  जैसे साहित्य के मूलतत्वों से मिलती है। भारतीय साहित्य बाज़ार में इन अमूर्त्त संस्थाओं की ढेरों दुकानें अलग-अलग नामों से चलतीं रहीं हैं। 

आजकल ये पूरे प्राणपण से फ़ेसबुक पर अपना बाज़ार जमाने की कोशिश में जुटीं हैं। इनकी प्रकट विनम्रता देखकर लगता है कि आप अगर सहयोग करें तो साहित्य की ये चलती-फ़िरती यूनिवर्सिटियां होम डिलीवरी की सेवा भी प्रदान करतीं होंगीं।

इनकी सबसे बड़ी ख़ासियत यह है कि आप चाहें न चाहें, पर ये ज़बरदस्ती आ-आकर आपको सर्टीफ़िकेट देतीं हैं। आप कहतें रहें कि भई आप कौन!? हमारी सर्टीफ़िकेट में दिलचस्पी ही नहीं है, मगर ये नहीं मानतीं। इनके संस्कार बड़े तगड़े हैं। ये नाराज़ हो जातीं हैं। ये कहतीं हैं कि अगर हमसे सर्टीफ़िकेट न लोगे तो हम प्रचारित करेंगे कि तुम सर्टीफ़िकेट के लायक ही नहीं हो।

अभी पीछे एक-दो पागलों ने बोल दिया कि यूनिवर्सिटी जी, हम वाक़ई लायक नहीं हैं, बल्कि लायक होने में हमें शर्म आने लगी है, और आप जिस लायक हो वो आप कर ही रही हो, फ़िर इतनी परेशान क्यों हो ?

ऐसा सुनकर यूनिवर्सिटी और परेशान हो गई, परेशान होकर अपने संस्थापक के पास पहुंच गई कि गुरुजी, पागल तो ऐसा-ऐसा बोल रहा है, अब क्या जवाब देना है ?

अब देखो, लौटकर आती है तो क्या कहती है, यूनिवर्सिटी ?

वैसे न ही आए तो अच्छा है।

वरना पढ़े-लिखे अनपढ़ो की तरह पागल भी पढ़े-लिखे पागलों में तब्दील न हो जाएं।



-संजय ग्रोवर
11-06-2015

शनिवार, 6 जून 2015

ईश्वर बनाम परदा

व्यंग्य

ईश्वर कभी सामने क्यों नहीं आता, वह परदे में क्यों रहता है ?

1. वह अपने ही बनाए लोगों से डरता है.

2. वह शर्मीला है, बहुत ज़्यादा शर्मीला है.

3. उसकी सोच बहुत पिछड़ी हुई है.

4. वह इस व्यवहारिक दुनिया की सर्दी और गर्मी बर्दाश्त नहीं कर सकता, इसलिए ख़्वाबों-ख़्यालों में रहना पसंद करता है.

5. उसे हिंदी, अग्रेज़ी, चीनी, जापानी, फ्रेंच, जर्मन.....कोई भाषा नहीं आती.....वह बात कैसे करेगा ?

6. ईश्वर के कपड़े मैले हो गए हैं, उसने ऑनलाइन ऑर्डर दे रखा है और नये कपड़ों का इंतज़ार कर रहा है.....

7. ईश्वर डरता है कि लोग उसे पहचानेंगे कैसे! क्योंकि सारी दुनिया में उसकी इतनी अलग़-अलग़ तरह की तस्वीरें डिस्ट्रीब्यूट की गई हैं कि किसी एक तस्वीर की शक़्ल दूसरी तस्वीर से नहीं मिलती. और असली ईश्वर को किसीने देखा नहीं है.

8. ईश्वर मिठाई से डरता है, वह जानता है कि लोग उसकी मूर्तियों तक को मिठाई के अलावा कुछ नहीं देते। ऊपर से उसकी जान-पहचान में कोई अच्छा डॉक्टर नहीं है जो डाइबिटीज़ का इलाज जानता हो.

9. ईश्वर बीमार है और इस हालत में लोगों के सामने आया तो लोगों का विश्वास उसपर से उठ जाएगा.

10. असलियत ईश्वर नहीं है असलियत तो वह परदा है जिसके पीछे उसे बनानेवालों का यह राज़ छुपा है कि ईश्वर सिर्फ़ एक झूठ है.

???

-संजय ग्रोवर


05-06-2015

ब्लॉग आर्काइव