सोमवार, 25 सितंबर 2017

भुला दे डर, ज़रा नये तरह से डर

एक चैनल का यह विज्ञापन आपने देखा होगा। इसमें सर्वश्री/सुश्री अजय देवगन, धोनी, महिला खिलाड़ी आदि आती-जाते हैं।

देखकर लगता है कि भारत में अजय देवगन, महेंद्र धोनी व महिला से पहले न तो कोई ऐक्टिंग करता था, न खेलता था, न ....

एक दिन इन्होंने निर्णय लिया कि कुछ भी हो हम तो खेलेंगे, कैसी भी करें, ऐक्टिंग तो करेंगे, महिलाएं भी खेलेंगे....

तब इन्होंने ख़ुद स्टेडियम बनाए, बल्ले बनाए, दर्शक बनाए, लोगों को बनाया और शुरु कर दिया, बनाए ही रखा.......

इसके बाद लोगों को, बने हुए लोगों को समझ में आया कि बनते कैसे हैं और बनाते कैसे हैं, ऐसे किया जाता है कुछ अलग कर.....

वैसे मैं कुछ-कुछ धोनी को भी पसंद करता हूं और देवगन को भी, महिला याद नहीं आ रहीं, शायद उन्हें भी पसंद करता होऊं....

पर मेरी समस्या (या साहस) यह है कि मैं डर के मारे किसीको भी पसंद नहीं कर सकता !

(यह विज्ञापन चालू रखें वरना आनेवाली पीढ़ियों को भारत का बौद्धिक इतिहास कैसे पता चलेगा ?)

-संजय ग्रोवर
25-09-2017
(चलते-चलते: सुना है आज राहुल गांधी फिर मंदिर चले गए ; भुला दे डर, भगवान तक से डर)

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