शुक्रवार, 27 मई 2016

तोताकॉपी

पिता पर लेख लिखना था।

लड़का बड़ा लायक था। दोस्तों, गुरुओं और लाइब्रेरियों से पिता पर क़िताबें जमा की, इंटरनेट पर पिता को खोजा और कुल मिलाकर एक अच्छा-ख़ासा लेख लिख डाला।

लेख छप गया।

‘पापा! देखो, मेरा लेख छपा है!’

पापा ने पूरा पढ़ा और चैन की सांस ली, ‘शुक्र है मुझपर कुछ नहीं लिखा.’


-संजय ग्रोवर
27-05-2016


शनिवार, 7 मई 2016

सच्चा डर

हर कोई बच्चे से यही कह रहा था,‘‘बेटे बड़ा आदमी बनना, क़ामयाब बनना, माँ-बाप का नाम रोशन करना.......’’

एक आदमी न जाने कहां से निकलकर आया, बोला, ‘‘बेटे, आदमी बनना, सच्चा आदमी बनना.....’’

बच्चा ग़ौर से उसकी तरफ़ देखने लगा-

और तब से परिवार परेशान है, लोग घबराए हैं, बाज़ार उदास है, दुनियादारी सहमी हुई है, धर्मगुरुओं की सांसें रुकी हैं, सत्ताएं सोच में हैं, स्कूल-कॉलेज-विश्वविद्यालय ख़ौफ़ में हैं, फ़िल्मकार और लेखक कुछ कहना चाहते हैं पर कह नहीं पा रहे हैं.....

-संजय ग्रोवर
07-05-2016



ब्लॉग आर्काइव