हर कोई बच्चे से यही कह रहा था,‘‘बेटे बड़ा आदमी बनना, क़ामयाब बनना, माँ-बाप का नाम रोशन करना.......’’
एक आदमी न जाने कहां से निकलकर आया, बोला, ‘‘बेटे, आदमी बनना, सच्चा आदमी बनना.....’’
बच्चा ग़ौर से उसकी तरफ़ देखने लगा-
और तब से परिवार परेशान है, लोग घबराए हैं, बाज़ार उदास है, दुनियादारी सहमी हुई है, धर्मगुरुओं की सांसें रुकी हैं, सत्ताएं सोच में हैं, स्कूल-कॉलेज-विश्वविद्यालय ख़ौफ़ में हैं, फ़िल्मकार और लेखक कुछ कहना चाहते हैं पर कह नहीं पा रहे हैं.....
-संजय ग्रोवर
07-05-2016
एक आदमी न जाने कहां से निकलकर आया, बोला, ‘‘बेटे, आदमी बनना, सच्चा आदमी बनना.....’’
बच्चा ग़ौर से उसकी तरफ़ देखने लगा-
और तब से परिवार परेशान है, लोग घबराए हैं, बाज़ार उदास है, दुनियादारी सहमी हुई है, धर्मगुरुओं की सांसें रुकी हैं, सत्ताएं सोच में हैं, स्कूल-कॉलेज-विश्वविद्यालय ख़ौफ़ में हैं, फ़िल्मकार और लेखक कुछ कहना चाहते हैं पर कह नहीं पा रहे हैं.....
-संजय ग्रोवर
07-05-2016
अच्छी रचना ...|
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