छोटा-सा व्यंग्य
इतिहास पढ़ने में मेरी कभी दिलचस्पी नहीं रही। हां, कोई बता दे, बात रोचक या महत्वपूर्ण हो तो सुन लेता हूं। वैसे, थोड़ा दिमाग़ लड़ाएं तो, सामने घट रही घटनाओं से भी इतिहास का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
अब जैसे कि मुझे लग रहा है कि हिटलर जिन्हें गैस-चैम्बर कहता था दरअसल वो टीवी स्टूडियो थे। जिसे वह प्रताड़ना कहता था वह दरअसल टीवी डिबेट होती थी जिसमें उसके विरोधियों को मजबूरन ख़ुशी-ख़ुशी भाग लेना पड़ता था। वे तो बेचारे आना नहीं चाहते थे क्योंकि वे जानते थे कि डिबेट का अच्छा-ख़ासा प्रचार होगा और उनके बड़े-बड़े रंगीन विज़ुअल दिखाकर उन्हें हीरो बनाया जाएगा, मगर हिटलर अपने स्टूडियो की आरामदायक वैन भेजकर जबरन उन्हें घर से उठवा लेता था।
इससे उसके विरोधियों को बड़ा कष्ट होता था और वे ख़ुशी के मारे मर जाते थे।
-संजय ग्रोवर
07-01-2016
(पूर्णतया काल्पनिक ठीक वैसे ही जैसे प्रायोजित बहसें)
इतिहास पढ़ने में मेरी कभी दिलचस्पी नहीं रही। हां, कोई बता दे, बात रोचक या महत्वपूर्ण हो तो सुन लेता हूं। वैसे, थोड़ा दिमाग़ लड़ाएं तो, सामने घट रही घटनाओं से भी इतिहास का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
अब जैसे कि मुझे लग रहा है कि हिटलर जिन्हें गैस-चैम्बर कहता था दरअसल वो टीवी स्टूडियो थे। जिसे वह प्रताड़ना कहता था वह दरअसल टीवी डिबेट होती थी जिसमें उसके विरोधियों को मजबूरन ख़ुशी-ख़ुशी भाग लेना पड़ता था। वे तो बेचारे आना नहीं चाहते थे क्योंकि वे जानते थे कि डिबेट का अच्छा-ख़ासा प्रचार होगा और उनके बड़े-बड़े रंगीन विज़ुअल दिखाकर उन्हें हीरो बनाया जाएगा, मगर हिटलर अपने स्टूडियो की आरामदायक वैन भेजकर जबरन उन्हें घर से उठवा लेता था।
इससे उसके विरोधियों को बड़ा कष्ट होता था और वे ख़ुशी के मारे मर जाते थे।
-संजय ग्रोवर
07-01-2016
(पूर्णतया काल्पनिक ठीक वैसे ही जैसे प्रायोजित बहसें)
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