‘एक ही तरीक़ा है, और अहिंसक तरीक़ा है....’
‘क्या सर?’
‘उसकी इमेज ख़राब कर दो, मटियामेट कर दो, उसके लिखे को लेकर भ्रम फ़ैलाओ, उसके बारे में कहानियां गढ़कर फ़ैला दो........ख़त्म हो जाएगा....
‘ओके सर। डन।’
* * *
‘हां, हो गया काम ?’
‘नहीं सर, एक प्रॉबलम आ रही है......
‘प्रॉबलेम, इतने ज़रा-से काम में प्रॉबलेम! पहले तो कभी ऐसा नहीं हुआ!!’
‘वो सर.....क्या है कि...उसकी कोई इमेज ही नहीं है.....ख़राब किसे करें !?’
‘क्या बात करते हो ? लोग तो इमेज के लिए जीते हैं, बल्कि जीते-जी मर जाते हैं! यह कैसा आदमी है जो इमेज के बिना जीता है!!’
‘.........................’
‘हुम......, एक काम करो......पहले उसकी कोई इमेज बनाओ। और जब बन जाए तो उसे ख़राब कर देना। अब देखते हैं कैसे बचता है.....जाओ शुरु हो जाओ ; इस बहाने कुछ रचनात्मक काम भी होगा....
‘रचनात्मक! वाह ! क्या आयडिया है सर ! इसे डन समझिए सर।’
-संजय ग्रोवर
23-09-2014
डन। बहुत मार्मिक व्यंग्य।
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