सोमवार, 22 नवंबर 2010

पागलखाने की जांच-पोस्ट

 दुनिया वालो, आओ किसी दिन, आ पगलालय में देखो-
दिन को होला, रात दिवाला, रोज़ मनाता पगलालय.......

 पागलखाना 24 घंटे सबके लिये खुला है।
रोज़मर्रा के जीवन में पागलपन एक नियमित घटना है।
अपने-आपसे ख़ुदको छुपाना ठीक नहीं।
कोई भी, कभी भी बिना किसी जांच-पड़ताल, वीज़ा-पासपोर्ट के यहां शामिल-दाखिल हो सकता है। वैसे भी शामिल होना-न होना एक औपचारिक प्रक्रिया है, जो, जो है, वो, वो तो रहेगा ही।
वक्त-स्थान-काल-घोषित-अघोषित-पंजीकृत-अपंजीकृत सब फ़ालतू बातें हैं। आना है तो आओ, बुलाएंगे नहीं. नखरे किसीके उठाएंगे नहीं..

पागलखाना सबके लिए खुला है, मधुशाले का भी बाप (स्त्रीवादी 'मां' पढ़ें) है ये...
(मधुशाला बहुत-से पागलों को प्रिय है अतः उसे टक्कर देना ज़रुरी है।)
बाहरवालो अंदर आओ, अंदरवालो बाहर जाओ, सब अपनी-अपनी सही जगह पकड़ो, समझे क्या !!??
कहीं समझ तो नहीं गए !!??



मैं पागल मेरा मनवा पागल....पागल मेरी टीम रे...


इन्हीं बिगड़े दिमाग़ों में, बहुत ख़ुशियों के लच्छे हैं/
 हमें पागल ही रहने दो कि हम पागल ही अच्छे हैं

-शायर ? होगा कोई पागल


शातिराना सी है ज़िंदगी की फ़ज़ां
आप भी गंदगी का मज़ा लीजिए..
Yah गटर बन गया आपके वास्ते
आप जो चाहे उसमें बहा दीजिए..



(अपने-आप बनाया है, कहीं से लिया नहीं है, हां)


Aur kitta description chaahiye aapko ?
KahiN PAAGAL to nahiN ho !?
HO kya ?
Aa jaao fir.
Khub Guzregi..



आईए और अपनी प्रतिभा का व्यंग्य-प्रदर्शन कीजिए और हमारी मेधा का व्यंग्य-प्रदर्शन देखिए।
आप कितना भी छुपा लें, हमें पता है आप अंदर से क्या हैं।
अरे, आपमें-हममें कोई फ़र्क है क्या ?
यहां कोई छोटा-बड़ा नहीं। यक़ीन न हो तो ख़ुद आकर आंखे फाड़-फाड़कर देख लीजिए।
अब आ भी जाईए। सिर्फ़ पागलखाने में दाखि़ल न होने से कोई स्वस्थ नहीं हो जाता।
ओके। जब हालात बेकाबू हो जाएं तब आ जाईएगा, हम संभाल लेंगे।
दैट’स् ऑल..
(जारी ;-)

8 टिप्‍पणियां:

  1. जै हो महाराज!
    इस पागलखाने में मैं खुद अपना स्वागत करता हूँ।

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  2. मैं आपकी तरफ़ से अपना स्वागत करता हूं ;-)

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  3. ye pagal khana aur kuch karwaye na karwaye...chashme ka num zaroor badha dega....padhne mein behad mushkil ho rahi hai...

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  4. फौजिया रेयाज सही कह रही हैं। दिमाग का नहीं तो कम से कम ऑखों का ख्‍याल तो रखिए । टेक्‍ट बैकग्राउंड सफेद करिए। फांट बडे करिए। और हेडर को भी चक्षु सुहाती बनाइए। साथ ही मेरे नाम से कुमार हटाइए वह फेसबुक की मजबूरी है।

    ध.

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  5. ओए, मज़ा आ गया! मैं तो समझता था मेरी नज़र कमज़ोर है, पर आप लोगों के तो बुरे हाल हैं। काहे पागलखाने में उदासी और गंभीरता फैलाना चाहते हो दोस्तो ! बहरहाल, शिकायतें डाक-पेटी में डालते रहिए, मौका मिलते ही कुछ-न-कुछ कर दिया जाएगा।

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  6. अऱवा भरवा सरवा खरवा मरवा गरवा अमरा बरवा घरवा चरवा ...
    अंय ... क्या लिखा हूँ मैने पता है ।.....
    इसी से सिद्ध होता है कि मेरे ब्लॉग को कुछ लोगों नें हडप लिया है

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  7. हड़प, गड़प सड़प.....
    डब्बूजी, मज़ाक अच्छा है मगर इससे पागलों की प्रतिष्ठा ख़तरे में भी पड़ सकती है कि पागल भी झूठे इल्ज़ाम लगाते हैं.....
    Vaise mera yah kathan kaisa hai :-
    लोग मुझे जाने, मेरे विचारों को जाने जो एक क्रांति भी ला सकते हैं ।
    ;-)

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  8. वाह! अब जा के सही ठिकाना मिला वो भी इतने दिनों बाद!
    गर प्यार में पागल हो कर
    मिल जाए प्यार की मंज़िल
    तो मैं सबको कह दूँ मैं पागल हूँ मैं पागल
    पागल दुनिया हो जाए जो मिले मुझे मेंरे सांवरिया '
    अरे मैं बहुत खुश हूँ आज.कम से कम अब तो कोई मुझे समझ सकेगा.
    वैसे ऐसिच हूँ मैं -एकदम पागल हा हा हा

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