रविवार, 30 अक्तूबर 2011

शोषण-उन्मूलन


व्यंग्य

‘‘सर, चारों ओर से आवाजें उठ रहीं हैं कि हम लोगों का शोषण करते हैं।’’
‘‘ अब कौन बोला ?’’
‘‘ सर पी पार्टी वाले बोल रहे हैं ’’
‘‘ ठीक है पी पार्टी के सदस्य बन जाओ, अपने आदमी भर्ती करो उसमें ’’
‘‘ सर डी पार्टी के लोग भी यही बोलते हैं ’’
‘‘ ओफो ! डी में घुसो, ऐसे घुसो कि उनको लगे तुमसे ज्यादा ख़ास उनका कोई है ही नहीं।’’
‘‘ सर, वंचित वर्ग कह रहा है कि हमने बहुत पागल बनाया है उनको।’’
‘‘ उफ, ये वंचित बहुत दिमाग खाता है, ऐसा करो या तो इनका लीडरशिप अपने हाथ में लो या लीडर के सगे बन जाओ।’’
‘‘ कोई मुश्किल नहीं सर, पर इधर से विपरीतलिंगी बोल रहे हैं वो सब उल्टे-सीधे क़ानून-धरम हमीं ने बनाए हैं जिनकी वजह से उनका शोषण होता है ’’
‘‘ तो उनको वो सब स्टेपनी पंक्ति दिखाओ जिसमें उनकी तारीफ है, समझाओ कि दूसरों के यहां इससे भी ज्यादा शोषण है, जाओगी कहां ? कितनी बार बताना पड़ेगा ?’’
‘‘ सर असली अध्यात्मिक ध्यान केंद्र वाले भी बोल रहे हैं कि शोषण तो हमींने किया है ’’
‘‘ तो दिखा दो न अपनी कैसी मास्टरी है अध्यात्म पर ! सब कुछ मुझे बताना पड़ेगा ? उनके भक्तों के भक्त बन जाओ।’’
‘‘सर निरीश्वरवादी, बुद्धत्ववादी, वामवादी भी उबाल पर हैं !’’
‘‘क्या बात कर रहे हो !? उनमें आधे लोग तो हमारे ही हैं ! नेतृत्व तो सब जगह अपना ही है ! कुछ ऊपर-नीचे हो गया होगा, सैट करो।’’
‘‘ सर यूनियन वाले भी असंतुष्ट हैं ।’’
‘‘ तो तुम्हे कबसे तो बोल रहा हूं, यूनियन लीडर ज्यादा से ज्यादा अपने आदमी होनें चाहिए। नही तो उनके इतने क़रीब हो जाओ कि उन्हें लगे उनके पिताजी से भी ज्यादा तुम उनके लिए फिक्रमंद हो।’’
‘‘ सर दो-तीन सच्चे और ईमानदार लोग भी हमीं पर उंगली उठा रहे हैं।’’
‘‘ उनको उनके हाल पर छोड़ दो। उन्हें तो उनके आस-पास की पब्लिक ही बराबर कर देगी।’’
‘‘ हा हा हा ! सही बोला, सर।’’
---------ब्रेक--------
‘‘ हां, सब हो गए अपनी-अपनी जगह सैट ?’’
‘‘ क़रीब-क़रीब हो गए सर।’’
‘‘ ठीक है, अब एक अभियान छेड़ते हैं, तुम सब अपनी-अपनी जगह से समर्थन देना, हम बोलेंगे कि देखो, पी, डी, वंचित, विपरीत, यूनियन.....हर कोई हमें समर्थन दे रहा है। इस समर्थन को देखके दूसरे भी समर्थन देंगे। पैसे से पैसा कमता है। भीड़ को देखके भीड़ आती है। ’’
‘‘ वो तो ठीक है, सर, पर ब्रेक में एक आयडिया आया है !’’
श्श् बोलो फिर’’
‘‘ सर, इतनी सब कवायद करने से बेहतर यह नहीं होगा कि हम शोषण करना छोड़ दें !?’’
‘‘ ऐं !!, ........................... ‘‘पर फिर हम करेंगे क्या !?’’

-संजय ग्रोवर

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