जय हो
एक कोई लड़की है। कुछ गुण्डे हैं। उनके पास अच्छी, बड़ी-बड़ी गाड़ियां हैं। वे लड़की को उन्हीं गाड़ियों में उठा ले जाना चाहते हैं। वह जाना नहीं चाहती। जय फ़िल्म का हीरो है। वह गुण्डों को मारता है। इतना नहीं मारता जितना क्लाइमैक्स में मारा जाता है मगर कम भी नहीं मारता।
जय में एनर्जी काफ़ी भरी हुई है। वह न सिर्फ़ बहुत ऊंचा-ऊंचा उछलकर मार-पीट करता है बल्कि दो ही मिनट के बाद ज़ोर-ज़ोर से नाचता हुआ, एक गाना भ्रष्टाचार पर भी गाता है। इस गाने को सुनकर एक पुराना गाना याद आता है। यह रहा उसका लिंक-
http://youtu.be/NykVp7qG_Ss
इस बीच पता चलता है कि इस फ़िल्म में तब्बू, सलमान की बहिन है। पहले भी एक तब्बू आया करती थीं फ़िल्मों में। काफ़ी प्रतिभाशाली अभिनेत्री रहीं।
पता नहीं ये वही हैं या कोई और हैं। शक़्ल बिलकुल वैसी ही है।
डेज़ी शाह नयी अभिनेत्री हैं। वैसे तो कई बार पुराने भी बिलकुल नयों जैसा अभिनय करते हैं। पर डेज़ी की तंदरुस्ती ठीक-ठाक है। लहंगे के साथ गमबूट पहनकर काफ़ी भूकंपीय नृत्य करतीं हैं।
इधर गाना खत्म होता है, उधर जय एक विकलांग लड़की की मदद करता है। जय इस फ़िल्म में बहुत सारे (तक़रीबन चार-पांच) लोगों की सीधे-सीधे मदद करता है। वह यही करता रहता है।
फ़िल्म का एक प्लस प्वाइंट यह है कि जय के भांजे का नाम कबीर है।
मुझे जब किसी फ़िल्म में प्लस प्वाइंट निकालने हों तो मैं कैसे भी करके निकाल लेता हूं।
ट्रैफ़िक जाम की वजह से दूसरी बार कोई भी विकलांग लड़की की मदद के लिए नहीं पहुंच पाता। लड़की आत्महत्या कर लेती है। ट्रैफ़िक इसलिए जाम है कि किसी मंत्री की बेटी ने वहां से गुज़रना है।
फ़िल्म में मंत्री, पुलिस वगैरह के मुद्दे शुरु हो जाते हैं।
फ़िल्म शायद गंभीर हो रही है।
मैं आपको ठीक से बताता हूं।
जय एक बड़े घर का आम आदमी है। उसके पास तरह-तरह के सादा कपड़े हैं जिनके रंग थोड़े भड़कीले-भड़कीले से हैं। कपड़े तो चलो फ़ुटपाथ पर मिल जाते हैं पर उसके पास तो बाइकस् भी चार-पांच हैं। एक बार तो वह एक आदमी को बाइक फ़ेंककर ही मार देता है।
इस फ़िल्म से यह सीख भी मिलती है कि लोगों को उछल-उछलकर मारने के लिए मारने के लिए कृश या सुपरमैन होना ज़रुरी नहीं। बस थोड़ा फ़्लैक्सीबिल चरित्र का आदमी होना चाहिए जिसके चाहे जैसे विज़ुअल्स् बनाए जा सकें। इसके लिए कई लोग न्यूज़ चैनल्स् भी देख सकते हैं।
चूंकि जय को कई बार कई लोगों की मदद करनी होती है इसलिए कई बार कई लोगों को पीटना भी होता है।
आधी फ़िल्म गुज़र जाती है तो फ़िल्म के सभी पात्र अचानक ही जय को जय अग्निहोत्री कहकर पुकारना शुरु कर देते हैं।
इसे भी आप एक नये प्रयोग या किसी भारी सस्पेंस के ख़ुलने की तरह ले सकते हैं।
बहरहाल फ़िल्म में काफ़ी कुछ है। परंपरा भी है। स्त्रियां किचन में खाना वगैरह बनातीं हैं और पुरुष डायनिंग टेबल पर राजनीति वगैरह डिसकस करते हैं या खाने का इंतज़ार करते हैं। फ़िल्म में प्रगतिशील प्रेम भी है। जय का भांजा कबीर अपनी पड़ोसन रिंकी और जय के प्रेम के दौरान कई प्रगतिशील संवाद बोलता है। यहां तक कि हीरोइन रिंकी एक बार मारपीट के दौरान जय की मदद करने की भी कोशिश करती है जो कि किसी वजह से हो नहीं पाती।
फ़िल्म में कई लोग हैं जो बहुत अच्छे हैं, कई हैं जो बहुत ख़राब हैं। चूंकि जय सबसे अच्छा है इसलिए सारे ख़राब लोगों को वह अकेला ही मार डालता है। जो दस-पांच लोग उसके हाथों नहीं मरते, उसे आप उनकी प्राकृतिक मौत समझ लीजिए।
मैं बिलकुल भी नहीं कह रहा कि फ़िल्म अजीब है। इस तरह तो फ़िर मुझे बहुत सारी फ़िल्मों को अजीब कहना पड़ेगा। फ़िल्म में जिसके लिए अभिनय का जितना भी स्कोप रहा उतनी कोशिश सभी ने की है।
कबीर का रोल करनेवाला लड़का, सीरियसली, मुखर और संभावनाशील है। नयी अभिनेत्री डेज़ी शाह भी ठीक-ठाक हैं। गीत-संगीत कई लोगों मधुर या मेलोडियस भी लग सकते हैं।
आजकल फ़िल्में अपनी सारी कमाई पहले ही दिन कर लेती हैं। बाद में कोई देखे कि न देखे, फ़र्क़ भी क्या पड़ता है।
-संजय ग्रोवर
30-01-2014
Cast, Crow, Cry, Crew etc......
Directed by Sohail Khan,
एक कोई लड़की है। कुछ गुण्डे हैं। उनके पास अच्छी, बड़ी-बड़ी गाड़ियां हैं। वे लड़की को उन्हीं गाड़ियों में उठा ले जाना चाहते हैं। वह जाना नहीं चाहती। जय फ़िल्म का हीरो है। वह गुण्डों को मारता है। इतना नहीं मारता जितना क्लाइमैक्स में मारा जाता है मगर कम भी नहीं मारता।
जय में एनर्जी काफ़ी भरी हुई है। वह न सिर्फ़ बहुत ऊंचा-ऊंचा उछलकर मार-पीट करता है बल्कि दो ही मिनट के बाद ज़ोर-ज़ोर से नाचता हुआ, एक गाना भ्रष्टाचार पर भी गाता है। इस गाने को सुनकर एक पुराना गाना याद आता है। यह रहा उसका लिंक-
http://youtu.be/NykVp7qG_Ss
इस बीच पता चलता है कि इस फ़िल्म में तब्बू, सलमान की बहिन है। पहले भी एक तब्बू आया करती थीं फ़िल्मों में। काफ़ी प्रतिभाशाली अभिनेत्री रहीं।
पता नहीं ये वही हैं या कोई और हैं। शक़्ल बिलकुल वैसी ही है।
डेज़ी शाह नयी अभिनेत्री हैं। वैसे तो कई बार पुराने भी बिलकुल नयों जैसा अभिनय करते हैं। पर डेज़ी की तंदरुस्ती ठीक-ठाक है। लहंगे के साथ गमबूट पहनकर काफ़ी भूकंपीय नृत्य करतीं हैं।
इधर गाना खत्म होता है, उधर जय एक विकलांग लड़की की मदद करता है। जय इस फ़िल्म में बहुत सारे (तक़रीबन चार-पांच) लोगों की सीधे-सीधे मदद करता है। वह यही करता रहता है।
फ़िल्म का एक प्लस प्वाइंट यह है कि जय के भांजे का नाम कबीर है।
मुझे जब किसी फ़िल्म में प्लस प्वाइंट निकालने हों तो मैं कैसे भी करके निकाल लेता हूं।
ट्रैफ़िक जाम की वजह से दूसरी बार कोई भी विकलांग लड़की की मदद के लिए नहीं पहुंच पाता। लड़की आत्महत्या कर लेती है। ट्रैफ़िक इसलिए जाम है कि किसी मंत्री की बेटी ने वहां से गुज़रना है।
फ़िल्म में मंत्री, पुलिस वगैरह के मुद्दे शुरु हो जाते हैं।
फ़िल्म शायद गंभीर हो रही है।
मैं आपको ठीक से बताता हूं।
जय एक बड़े घर का आम आदमी है। उसके पास तरह-तरह के सादा कपड़े हैं जिनके रंग थोड़े भड़कीले-भड़कीले से हैं। कपड़े तो चलो फ़ुटपाथ पर मिल जाते हैं पर उसके पास तो बाइकस् भी चार-पांच हैं। एक बार तो वह एक आदमी को बाइक फ़ेंककर ही मार देता है।
इस फ़िल्म से यह सीख भी मिलती है कि लोगों को उछल-उछलकर मारने के लिए मारने के लिए कृश या सुपरमैन होना ज़रुरी नहीं। बस थोड़ा फ़्लैक्सीबिल चरित्र का आदमी होना चाहिए जिसके चाहे जैसे विज़ुअल्स् बनाए जा सकें। इसके लिए कई लोग न्यूज़ चैनल्स् भी देख सकते हैं।
चूंकि जय को कई बार कई लोगों की मदद करनी होती है इसलिए कई बार कई लोगों को पीटना भी होता है।
आधी फ़िल्म गुज़र जाती है तो फ़िल्म के सभी पात्र अचानक ही जय को जय अग्निहोत्री कहकर पुकारना शुरु कर देते हैं।
इसे भी आप एक नये प्रयोग या किसी भारी सस्पेंस के ख़ुलने की तरह ले सकते हैं।
फ़िल्म में कई लोग हैं जो बहुत अच्छे हैं, कई हैं जो बहुत ख़राब हैं। चूंकि जय सबसे अच्छा है इसलिए सारे ख़राब लोगों को वह अकेला ही मार डालता है। जो दस-पांच लोग उसके हाथों नहीं मरते, उसे आप उनकी प्राकृतिक मौत समझ लीजिए।
मैं बिलकुल भी नहीं कह रहा कि फ़िल्म अजीब है। इस तरह तो फ़िर मुझे बहुत सारी फ़िल्मों को अजीब कहना पड़ेगा। फ़िल्म में जिसके लिए अभिनय का जितना भी स्कोप रहा उतनी कोशिश सभी ने की है।
कबीर का रोल करनेवाला लड़का, सीरियसली, मुखर और संभावनाशील है। नयी अभिनेत्री डेज़ी शाह भी ठीक-ठाक हैं। गीत-संगीत कई लोगों मधुर या मेलोडियस भी लग सकते हैं।
आजकल फ़िल्में अपनी सारी कमाई पहले ही दिन कर लेती हैं। बाद में कोई देखे कि न देखे, फ़र्क़ भी क्या पड़ता है।
-संजय ग्रोवर
30-01-2014
Cast, Crow, Cry, Crew etc......
Directed by Sohail Khan,
Writing Credits : A.R. Murugadoss (story), Dllip Shukla (screenplay and dialogue)
Salman Khan as Jai Agnihotri
Tabu as Geeta
Daisy Shah
Danny Denzongpa
Sabareesh
Ashmit Patel
Yash Tonk
Nadira Babbar
Pulkit Samrat
Tabu as Geeta
Daisy Shah
Danny Denzongpa
Sabareesh
Ashmit Patel
Yash Tonk
Nadira Babbar
Pulkit Samrat
Producer
Sunil A Lulla, Sohail Khan
Sunil A Lulla, Sohail Khan
Story Writer
A R Murugadoss (Based on 2006 Tollywood Film 'Stalin' directed A. R. Murugadoss)
Screenplay & Dialogues
Dileep Shukla
Music Director
Sajid-Wajid, Amal Malik, Devi Sri Prasad
Choreographer
Ganesh Acharya
Background Music
Sandeep Shirodkar
Choreographer
Remo D'Souza, Radhika Rao, Vinay Sapru, Jani Basha, Mudassar Khan
Costume Designer
Ashley Rebello, Alvira Agnihotri
Editor
Ashish Amrute
Director of Photography
Santosh Thundiyil
Production Designer
Sabu Cyril
Action Director
A. Arasakumar, Ravi Varma
Publicity Designer
Rahul Nanda
Sound Designer
Jitendra Singh, Leslie Fernandes
Executive Producer
Prapti Doshi Moorthy
Media Consultants
Spice
(इस समीक्षा को ज़्यादा गंभीरता से न लें, बहुत हल्के में भी न लें।) |
पढ़ ली देखने को पैसे नहीं हे इसलिए समीक्षा से काम चला लेते हैं
जवाब देंहटाएं"आजकल फ़िल्में अपनी सारी कमाई पहले ही दिन कर लेती हैं। बाद में कोई देखे कि न देखे, फ़र्क़ भी क्या पड़ता है।"
जवाब देंहटाएं-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
फिर मैं भी अपने पैसे क्यों बर्बाद करूँ ?.....वैसे भी कई युग बीत गए फिल्मों पर पैसे खर्च नहीं किये.......टीवी पर समाचार-अभिनेता और मेहमान-अभिनेता (बहस-योद्धा) भरपूर मनोरंजन कर ही देते है, उपहार में समाचार भी देते है. इसलिए समीक्षा से मनोरंजित होकर फ़िल्म न देखना तय हुआ.................ऐसी समीक्षाएँ आगे भी पढ़ने को मिलती रहेंगी इसी आशा के साथ आपका- पागलखाने वाला दोस्त.
मार्मिक दृष्टि है आपकी। वैसे इस फिल्म ने रजनीकान्त और सनी ड्योल की परंपरा में कुछ नया नहीं जोड़ा। डेजी शाह कुछ दिनों तक चलेगी। उसके बाद मंदाकिनी गति को प्राप्त हो जाएगी।
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