व्यंग्य
परिवार संस्था का अपने यहां बड़ा महत्व है। यह धूप में छाते की तरह होता है। छाते भी अपने यहां दो तरह के तनते आए हैं-एक काला और दूसरा रंगीन। हांलांकि काला अपने यहां बुराईयों और रंगीन, रंगीनियों का प्रतीक होता है। पर प्रगतिशीलता का अपने यहां पहला अर्थ है अवसरवादिता। तो हम प्रतीकों की अदला-बदली करके प्रगतिशील होते रहते हैं। और आखि़री मतलब है मौक़ापरस्ती। तो भी हम प्रतीकों की अदला-बदली करके प्रगतिशील होते रहते हैं। यहां आप चाहो तो अदला-बदली की जगह बदला-अदली लिख लो। इससे आपको पता लगेगा हममें और उनमें बड़ा बुनियादी और बेसिक फ़र्क हैं।
परिवार नाम का छाता आपकी कमियों को ढंक लेता है, यही इसकी ख़ूबी है। दूसरी ख़ूबी यह है कि कमियों को बख़ूबी, ख़ूबियां बना देता है। आपको भी अनुभव होगा किसीसे पूछो कि यार तुम एक ही चीज़ के किसीसे पांच सौ रुपए और किसीसे पांच हज़ार कैसे ले लेते हो? कोई ईमान-धरम है कि नहीं तुम्हारा ? वह तुरंत कहता है कि स्सा....तेरे तो बीवी-बच्चे हैं नहीं, तू क्या जाने परिवार कैसे चलता है। आप हड़बड़ा जाते हो, अपराधबोध में गढ़ जाते हो, कॉन्फ़िडेंस लूज़ कर जाते हो। इस तरह परिवार कमाई के रंगारंग तरीकों को जस्टीफ़ाई करता है, संबल देता है, कंबल भी देता है, मोराल देता है, मॉरल सपोर्ट देता है।
परिवार का महत्व इसीसे पता चलता है कि जिन्हें लोग आवारा, शोहदा, लुच्चा, लंपट, गुंडा और पता नहीं क्या-क्या कहतें हैं, वे सब भी अकसर घोषित परिवारों की पैदाइश होते हैं। फ़र्क बस इतना ही होता है कि जो गुंडे आगे भी अपनी गुंडागर्दी प्रतिष्ठा और इज़्ज़त के साथ जारी रखना चाहते हैं वे परिवार बसाना बेहतर समझते हैं। वैसे आजकल ग़ैरपारिवारिक गुंडो को भी थोड़ी-बहुत मान्यता मिलने लगी है। इससे मामला थोड़ा-बहुत ऑप्शनल हुआ है। अकसर कहा जाता है कि घर की बात घर में रहे तो अच्छा है। इसलिए समझदार लोग जिस व्यक्ति से संबंधित बात को घर में ही रखना चाहते हैं उस व्यक्ति को ही घर में रख लेते हैं यानि कि उससे घरेलू रिश्ते डेवलप कर लेते हैं।
यूं तो हमारा सारा देश ही एक परिवार की तरह है।
-संजय ग्रोवर
02-05-2014
परिवार संस्था का अपने यहां बड़ा महत्व है। यह धूप में छाते की तरह होता है। छाते भी अपने यहां दो तरह के तनते आए हैं-एक काला और दूसरा रंगीन। हांलांकि काला अपने यहां बुराईयों और रंगीन, रंगीनियों का प्रतीक होता है। पर प्रगतिशीलता का अपने यहां पहला अर्थ है अवसरवादिता। तो हम प्रतीकों की अदला-बदली करके प्रगतिशील होते रहते हैं। और आखि़री मतलब है मौक़ापरस्ती। तो भी हम प्रतीकों की अदला-बदली करके प्रगतिशील होते रहते हैं। यहां आप चाहो तो अदला-बदली की जगह बदला-अदली लिख लो। इससे आपको पता लगेगा हममें और उनमें बड़ा बुनियादी और बेसिक फ़र्क हैं।
परिवार नाम का छाता आपकी कमियों को ढंक लेता है, यही इसकी ख़ूबी है। दूसरी ख़ूबी यह है कि कमियों को बख़ूबी, ख़ूबियां बना देता है। आपको भी अनुभव होगा किसीसे पूछो कि यार तुम एक ही चीज़ के किसीसे पांच सौ रुपए और किसीसे पांच हज़ार कैसे ले लेते हो? कोई ईमान-धरम है कि नहीं तुम्हारा ? वह तुरंत कहता है कि स्सा....तेरे तो बीवी-बच्चे हैं नहीं, तू क्या जाने परिवार कैसे चलता है। आप हड़बड़ा जाते हो, अपराधबोध में गढ़ जाते हो, कॉन्फ़िडेंस लूज़ कर जाते हो। इस तरह परिवार कमाई के रंगारंग तरीकों को जस्टीफ़ाई करता है, संबल देता है, कंबल भी देता है, मोराल देता है, मॉरल सपोर्ट देता है।
परिवार का महत्व इसीसे पता चलता है कि जिन्हें लोग आवारा, शोहदा, लुच्चा, लंपट, गुंडा और पता नहीं क्या-क्या कहतें हैं, वे सब भी अकसर घोषित परिवारों की पैदाइश होते हैं। फ़र्क बस इतना ही होता है कि जो गुंडे आगे भी अपनी गुंडागर्दी प्रतिष्ठा और इज़्ज़त के साथ जारी रखना चाहते हैं वे परिवार बसाना बेहतर समझते हैं। वैसे आजकल ग़ैरपारिवारिक गुंडो को भी थोड़ी-बहुत मान्यता मिलने लगी है। इससे मामला थोड़ा-बहुत ऑप्शनल हुआ है। अकसर कहा जाता है कि घर की बात घर में रहे तो अच्छा है। इसलिए समझदार लोग जिस व्यक्ति से संबंधित बात को घर में ही रखना चाहते हैं उस व्यक्ति को ही घर में रख लेते हैं यानि कि उससे घरेलू रिश्ते डेवलप कर लेते हैं।
यूं तो हमारा सारा देश ही एक परिवार की तरह है।
-संजय ग्रोवर
02-05-2014
पारिवारिक व्यंग्य लिखने का मज़ा यही है कि चाहे कितनी ही गुंडई पर उतारू हों आपको गुंडा नहीं समझा जाएगा। लगे रहें।
जवाब देंहटाएंआप शौक से पागल मान लें ॥टिप्पणीकर्ता बाज़ नही आएगा।