बुधवार, 14 मई 2014

भगवान और हत्यारे के बीच संदेशों के आदान-प्रदान पर कुछ अटकलें

व्यंग्य

इसमें तो कोई नयी बात नहीं कि दुनिया में भगवान और धर्म के नाम पर हत्याएं होतीं हैं। मेरी उत्सुकता यह जानने में है कि जो लोग ये हत्याएं करते-करवाते हैं उनके मन/दिमाग़ में किस तरह यह ख़्याल, विचार या भाव आता है कि उन्हें भगवान ने इस कार्य के लिए नियुक्त किया है ? किस माध्यम से उन तक तथाकथित भगवान का यह आदेश पहुंचता है कि जाओ, आज इतने बजकर इतने मिनट इतने सैकण्ड पर तुम श्री/मि./मिसेज़/मिस/कुमारी अलां-फ़लां वल्द ढिकां-शिकां मकान नंबर इतना, गली नंबर उतना.......की हत्या कर दो, बाक़ी मैं संभाल लूंगा। क्या भगवान स्वयं यह मैसेज लेकर इनके पास आता है ? अगर भगवान स्वयं आता है तो वह हत्या भी स्वयं क्यों नहीं कर देता? क्या भगवान हत्या को छोटा काम समझता है? अगर हत्या छोटा काम है तो क्या भगवान ने इंसान को छोटे काम करने के लिए बनाया है ?

या भगवान ख़ुद सामने आने से डरता है? अगर डरता है तो मतलब यही है कि वह हत्या को ऐसा काम नहीं मानता जिसे ख़ुद किया जाए? क्यों? क्या इससे भगवान की इमेज ख़राब होती है? भगवान यह काम करने के लिए इंसान की आड़ क्यों लेता है? मेरी दिलचस्पी यह जानने में भी है कि भगवान और हत्यारे के बीच बात-चीत एकतरफ़ा होती है कि दोतरफ़ा ? कभी हत्यारे का भी तो मन होता होगा कि दो शब्द वह भी कहे। मान लो उसे यही कहना हो कि, सर आज तो मेरी तबियत ठीक नहीं है, अभी आधा घंटे पहले ही दो को निपटा के आया हूं, बोर हो रखा हूं, घरवाले भी पूछते हैं कि आए दिन छुप-छुपके क्या करने चले जाते हो, बड़ी शर्मिंदग़ी-सी होती है, कोई ऐसा काम दो न सर जो छुप-छुपके न करना पड़े........तो वह भगवान तक कैसे अपनी बात पहुंचाता होगा ?

भगवान इस कार्य के लिए जिस आदमी को चुनता है, क्या उसे वह कोई चिट्ठी वगैरह भेजता है? भगवान की हैंडराइटिंग कैसी है? यह सबको पता होना चाहिए। आजकल वैसे भी फ्रॉड बहुत होते हैं। कोई आदमी आए और कहे कि मुझे भगवान ने तुम्हारी हत्या के लिए भेजा है, हम कैसे पता लगाएंगे कि यह सच बोल रहा है? कोई अथॉरिटी लैटर वगैरह तो होना चाहिए न उसके पास! ऐसे तो कोई भी आकर किसीकी हत्या कर जाएगा! बोल देगा कि भगवान ने भेजा था। अगर हत्यारा हमें भगवान की हैंडराइटिंग में लिखा हमारी हत्या का आदेशपत्र दिखाए तो हम भी उसके फ़ेवर में एक पत्र लिखकर छोड़ जाएं कि इस बेचारे को थाना-कोर्ट-कचहरी के चक्कर में मत फंसाना, यह तो बेचारा मजबूर आदमी है, इसका दिल-दिमाग़ अपने कब्ज़े में नहीं है, मजबूरी में किसी और का काम कर रहा था। किसका ? भगवान का, विश्वास न हो तो यह इसके हाथ की चिट्ठी देख लो, भगवान के साइन से साइन मिला लो। आपके पास तो और भी चिट्ठियां रक्खी होंगी, आखि़र यह कोई पहली हत्या थोड़े न हो रही है भगवान के नाम पर! भगवान ठहरा दबंग, उसके कार्य से कोई कैसे इन्कार कर सकता है?

मगर फ़िर एक समस्या और खड़ी हो सकती है। बाक़ी लोग कहेंगे कि इस दुनिया में तो सारे ही काम भगवान की मरज़ी से होते हैं। तो बाक़ी हत्यारों को सज़ा क्यों दी जाती है? यह तो भेदभाव है। जब सब कुछ भगवान की मरज़ी से होता है तो ये थाना-कोर्ट-कचहरी सब बंद क्यों नहीं कर देते?

मुझे तो हैरानी यह है कि भगवान जैसा सर्वशक्तिमान हर काम आड़ में क्यों करता है? अभी मैंने कहीं पढ़ा, कुछ लोग कह रहे थे कि चमत्कार होनेवाला है, सब परेशानियां दूर हो जाएंगीं, एक बार हमें जीत जाने दो, भगवान सब ठीक कर देगा। अजीब बात है, जब भगवान ने ही सब ठीक करना है तो तुम्हारी ज़रुरत क्या है? भगवान सीधे ही सब ठीक कर देगा न। भगवान ने भी क्या मैच से पहले नेट-प्रैक्टिस करनी होती है? कब तक चलेगी यह नेट-प्रैक्टिस ? कभी मैच भी शुरु होगा कि नहीं? कभी नतीजा भी निकलेगा कि नहीं?

बहरहाल मेरी दिलचस्पी इस बात में पूरी तरह बनी हुई कि जो लोग ये हत्याएं करते-करवाते हैं उनके मन/दिमाग़ में किस तरह यह ख़्याल, विचार या भाव आता है कि उन्हें भगवान ने इस कार्य के लिए नियुक्त किया है ?

चलिए तब तक कुछ मनोविज्ञान पढ़ा जाए।

-संजय ग्रोवर
14-05-2014


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

निश्चिंत रहें, सिर्फ़ टिप्पणी करने की वजह से आपको पागल नहीं माना जाएगा..

ब्लॉग आर्काइव