बुधवार, 4 मार्च 2015

प्रतीक, प्रतिनिधि, प्रचार और प्रहसन

दो-तीन लफ़ंडरों ने सारा आसमान सर पर उठा रखा था।

पहले वे ख़ुद ही एक-दूसरे को चपत मारकर भाग जाते, फ़िर शोर मचा देते कि ‘हाय! कोई हमें मार गया, हाय! कौन मार गया!?’

दोपहर को वे छानबीन करते कि आखि़र वह कौन है जो रोज़ाना हमें मारकर भाग जाता है।

शाम को वे घोषणा करते कि संकट टल गया है, अब कोई परेशानी नहीं आएगी, यह नहीं होना चाहिए था पर हुआ मगर अब नहीं होगा।

और अगले संकट की तैयारी में जुट जाते।

पिछले कई सालों से कॉलोनी का सारा चंदा इसीमें ख़र्च हुआ जा रहा था!

कॉलोनी को भी खाज-खुजली में ख़ूब आनंद आता था।

वह भी चंदा दिए जा रही थी।
और रोए जा रही थी कि हाय! कहीं कुछ नहीं होता! आखि़र क्यों नहीं होता ?

-संजय ग्रोवर
04-03-2015


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