लघुकथा
लगता था उसकी बाइक में ब्रेक ही नहीं हैं।
पहली रेडलाइट वह बिना सिगनल की परवाह किए क्रॉस कर गया।
दूसरी पर दो बार तथाकथित राष्ट्रपिता को क़ुर्बान किया।
फ़िर तीसरी, चौथी, पांचवीं.......
पर इसबार उससे पहले शायद उसके (अफ़साने नहीं) बाइक के नंबर पहुंच गए थे-
‘क्या बात है भई, सांड की तरह क्यों भगा रहा है, लाइमलाइट में आना है क्या ?’
‘अरे! आपको कैसे पता चला ? मैंने तो घर पर भी नहीं बताया!’
‘अरे, हमें ना पता चलेगा! कौन-सा लाइम लाइट वाला है जो हमारी नज़रों से नहीं ग़ुज़रा। चल ढीला हो और निकल्ले। बाद में तो पहचानेगा भी नहीं।’
* * * ’ ’
‘अरे के हो गया द्रोगाजी?’
‘तुम्हे बड़ी जल्दी पड़ी है सब जानने की! तसल्ली रक्खो, उसे लाइम लाइट में पहुंचने दो, फिर देखना इससे भी बढ़िया सरकस दिखाएगा। चलो निकलो, काम करने दो।’
-संजय ग्रोवर
26-04-2015
लगता था उसकी बाइक में ब्रेक ही नहीं हैं।
पहली रेडलाइट वह बिना सिगनल की परवाह किए क्रॉस कर गया।
दूसरी पर दो बार तथाकथित राष्ट्रपिता को क़ुर्बान किया।
फ़िर तीसरी, चौथी, पांचवीं.......
पर इसबार उससे पहले शायद उसके (अफ़साने नहीं) बाइक के नंबर पहुंच गए थे-
‘क्या बात है भई, सांड की तरह क्यों भगा रहा है, लाइमलाइट में आना है क्या ?’
‘अरे! आपको कैसे पता चला ? मैंने तो घर पर भी नहीं बताया!’
‘अरे, हमें ना पता चलेगा! कौन-सा लाइम लाइट वाला है जो हमारी नज़रों से नहीं ग़ुज़रा। चल ढीला हो और निकल्ले। बाद में तो पहचानेगा भी नहीं।’
* * * ’ ’
‘अरे के हो गया द्रोगाजी?’
‘तुम्हे बड़ी जल्दी पड़ी है सब जानने की! तसल्ली रक्खो, उसे लाइम लाइट में पहुंचने दो, फिर देखना इससे भी बढ़िया सरकस दिखाएगा। चलो निकलो, काम करने दो।’
-संजय ग्रोवर
26-04-2015
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