बुधवार, 1 अप्रैल 2015

भगवान और बेईमान

व्यंग्य



करना कुछ नहीं है बस एक शब्द बदल देना है और फिर सब कुछ एकदम स्पष्ट है।

मान लीजिए कोई शक्ति है जो दुनिया को चला रही है, उसका एक नाम रख लेते हैं-बेईमान। अब देखिए-

*बेईमान सर्वशक्तिमान है, सर्वत्रविद्यमान है।

*बेईमान की मर्ज़ी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता।

*बेईमान कण-कण में विराज़मान है। उसके रुप अलग़-अलग़ हैं पर बेईमान एक ही है। क्या पक्ष, क्या विपक्ष, सब तरफ़ बेईमान की सत्ता है।

*या बेईमान! तेरा ही आसरा।

*मैं सिर्फ़ बेईमान से डरता हूं।

*स्साल्ला! बेईमान को नहीं मानता!? देखना एक न एक दिन ज़रुर पागल हो जाएगा।

*अगर बेईमान नहीं है तो लोग मर कैसे जाते हैं ? आदमी मरता है इससे पता चलता है कि बेईमान है।

*बेईमान की लाठी में आवाज़ नहीं होती।

*सब बेईमान के हाथ में है, जो वो चाहेगा, वही होगा।

*संसार से भागे फिरते हो, बेईमान को तुम क्या पाओगे ?

*एक न एक दिन सबको बेईमान के पास जाना है।

*तुम्हे कभी सफ़लता नहीं मिल सकती क्योंकि तुम बेईमान को नहीं मानते।

*ये नास्तिक कितने दुष्ट हैं! बेईमान तक को नहीं मानते।

*रात सपने में स्वयं बेईमान ने मुझे दर्शन दिए, ज़रुर आज कुछ न कुछ फ़ायदा होगा।

*उसे देखो, कितना बड़ा आदमी है मगर आज भी नियमित रुप से बेईमान के पास जाता है।

*बेईमान ने हमें कितना कुछ दिया है, उसका शुक्रिया तो अदा करना ही चाहिए।

*बेईमान के चरणों में बैठकर जो सुख मिलता है, दुनिया की किसी शय में नहीं मिलता।

..................इस तरह आप पाएंगे कि दुनिया की सारी समस्याएं सुलझ गई हैं, सारे रहस्य मिट गए हैं, कोई कन्फ़्यूज़न बाक़ी नहीं है।

-संजय ग्रोवर
01 अप्रैल 2015

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