शनिवार, 20 अप्रैल 2019

ऐन वक़्त पर होता है

ग़ज़ल

कोई छुपकर रोता है
अकसर ऐसा होता है

दर्द बड़ा ही ज़ालिम है
ऐन वक़्त पर होता है








शेर अभी कमअक़्ल है ना
अभी नहीं मुंह धोता है

तुम ही कुछ कर जाओ ना
वक़्त मतलबी, सोता है

वो मर्दाना नहीं रहा
यूं वो खुलकर रोता है
-संजय ग्रोवर

2 टिप्‍पणियां:

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