मंगलवार, 3 जनवरी 2012

शेर है, रुबाई है, दोहे हैं, पता नहीं क्या है? पर कुछ है-


उन्हें लगा मैं हार गया हूं, हाथ सभीने खींचे
उन्हें लगा मैं जीत गया हूं, हो लिए पीछे-पीछे
कह बैठा ‘तुम सब गिरगिट हो’, दांत सभी ने भींचे
अब बस पत्थर ही पत्थर थे और मैं आंखें मींचे

--संजय ग्रोवर ;)

4 टिप्‍पणियां:

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