रविवार, 18 जनवरी 2015

बजने का बजना



(एक काल्पनिक व्यंग्यात्मक बातचील)

घंटी बजती है।

दरवाज़ा खुलता है।

सामने एक ऐसी चेहरा दिखाई देता है जिसे संभ्रांत और सौम्य वगैरहा कहा जाता है। साथ में रंग-बिरंगे कपड़े पहने लोगों का हुजूम है, सरों पर टोपियां, हाथों में पैम्फ़लेट आदि हैं। कई युवा हैं।

‘जी कहिए !’

‘दरवाज़ा खोलिए, हम ज़रा आपको समझाने आए हैं....’

‘जी ज़रुर समझाईए...’

‘देखिए यह बहुत अच्छा वक़्त आया है कुछ करने का, ईश्वर ने यह दिन दिखाया है कि हम अपने वतन के लिए कुछ करें, आप हमारा समर्थन करें, हम मिलकर काम करेंगे....’

‘यह तो बहुत अच्छी बात है कि हम मिलकर काम करें. मगर लगता है आपको यह ख़्याल किसी ईश्वर की वजह से आया है...मैं भी उस ईश्वर से मिलना चाहूंगा जिसने आपको इतना अच्छा ख़्याल दिया है....वह आपके साथ आया होगा.....’

‘आप कैसी बातें कर रहे हैं, ईश्वर क्या किसीके साथ आता है......’

‘कमाल है! कल भी एक भाईसाहब आए थे और ख़ुदको ईश्वर का आदमी बताकर समर्थन मांग रहे थे, ईश्वर उनके साथ भी नहीं था....!

‘देखिए, हमारे पास बहुत वक्त नहीं है, ईश्वर इस तरह साथ नहीं आता.....’

‘आप मुझे समझाने आए हैं, ज़रा ठीक से समझाईए, मैं समझने को तैयार हूं, आप थोड़ा वक़्त निकालकर समझाईए कि ईश्वर किस तरह आपके साथ है, अगर आपके साथ है भी सही तो मैं आपका साथ क्यों दूं ? मैं तो किसी ईश्वर को जानता नहीं, कभी मिला नहीं। मिला भी होता तो भी मैं जान-पहचान-जुगाड़ को योग्यता नहीं मानता।’

‘ईश्वर की इ़च्छा है कि हम मिलकर काम करें, ईश्वर के बारे में जिस तरह आप सोच रहे हैं उस तरह नहीं सोचा जाता.....’

‘आपसे किसने कहा कि मैं ईश्वर के बारे में सोचता हूं, मुझे जब ज़रुरत होती है काम कर लेता हूं, ईश्वर से क्या लेना !? आप समझााईए कि अगर आपको लड़ने के लिए किसी ईश्वर ने भेजा है तो बाक़ी लोगों को किसने भेजा है ? ईश्वर क्या कोई चरित्र प्रमाण पत्र है ? कोई डिग्री है ? कोई अनुभव है ? कोई योग्यता है ? क्या है आखि़र ?’

‘देखिए, ऐसे हम एक-एक आदमी को समझाने लगे तो बहुत मुश्क़िल हो जाएगी.....ऐसे कैसे चल पाएगा.......’

‘आप एक को तो समझाईए, बाक़ी भी समझ जाएंगे। आप मुझे बस इतना साबित कर दीजिए कि आपको इस काम के लिए ईश्वर ने चुना है, हांलांकि मैं इसे कोई योग्यता नहीं मानता, मैं तो ऐसे व्यक्ति को बेहतर मानता हूं जो अपनी मरज़ी से आया हो.....चलिए आप इतना ही बता दीजिए कि आपसे पहले जो लोग थे उन्हें किसने भेजा था........’

‘देखिए, ये सब बातें हम बाद में भी कर सकते हैं.......वैसे आप करते क्या हैं ?’

‘आपको काफ़ी देर से यह ख़्याल आया! मैं जब जो ठीक लगे कर लेता हूं, वह कुछ भी जिससे दूसरों की हानि न हो......’

‘हुम्म......फ़िर तो आपको ईश्वर समझाना मुश्क़िल है......’

‘क्या आपको क़ानून की जानकारी है, न्याय का आयडिया है, इंसानियत का अंदाज़ा है ?

‘मतलब ?’

‘क्या आपको मालूम है कि आप जिस ईश्वर का हवाला देकर समर्थन मांग रहे हैं, उसे आप अगर साबित न कर पाएं तो आपका यह कृत्य धोखाधड़ी की श्रेणी में आएगा, इसके लिए सज़ा भी हो सकती है? क्या आपको मालूम है कि महिलाओं की जितनी समस्याएं हैं, सबकी जड़ में ऐसी क़िताबें और मान्यताएं हैं जिन्हें किसी ईश्वर द्धारा लिखा या चलाया बताया जाता है......आप तो स्वयं.....

‘ओफ्फ़ोह! आप तो भाईसाहब.....ग़लती हो गई कि आपकी घंटी बजा दी.....’

‘जी, मैं अजीब आदमी हूं, मुझे लगता है सभी को थोड़ा-थोड़ा अजीब होना चाहिए क्योंकि अपने यहां घंटियां अकसर ग़लत लोग बजाते रहे हैं, थोड़ा घंटिया बजाने वालों को भी बजाना ज़रुरी है कि नहीं, आप ही समझाईए, वरना तो जिसके भी हाथ घंटी लग जाएगी वही न्यायकर्त्ता बनके बैठ जाएगा। आप समझाईए कि क्या यही नहीं होता आ रहा? क्या यही नहीं होता चला जा रहा ?’

‘जी......’

‘जी, अगली बार अगर आप बिना ईश्वर का हवाला दिए आ सकें तो ज़रुर घंटी बजाईएगा, धन्यवाद। इसलिए भी धन्यवाद कि आप घंटी बजाकर रुके रहे वरना बहुत-से तो घंटी बजाकर भाग ही जाते हैं। धन्यवाद।’

(यह सब काल्पनिक है, किसी जीवित व्यक्ति का किसी मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है)

-संजय ग्रोवर

18-01-2015

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