व्यंग्य
एक पुराना, कुछ दरमियाना-सा घर।
एक दस्तक।
दरवाज़ा खुलता है-
जी कहिए ?
देखिए हम इस सिलसिले में आए थे मिर्ज़ा मालिक़ के काम पर कुछ काम कर सकें.....उनका नाम और काम भी सलीक़े से दुनिया के सामने आए.....
जी आईए, तशरीफ़ रखिए, क्या लेंगे, ठंडा या गर्म.......
जी बस हम चाहते हैं कि आपकी इजाज़त मिल जाए तो हम जल्द से जल्द काम शुरु करें......
ठीक है, बेटा ज़रा मिर्ज़ा साहब का......
जी अभी लाता हूं.....
देखिए, यह मिर्ज़ा साहब का वसीयतनामा है, उन्होंने परोपकारी और सामाजिक लोगों के लिए कुछ हिदायतें, कुछ शर्त्तें बताई हैं.....
जी हिदायतें! शर्त्तें! ........बताईए, फ़रमाईए....कुछ अच्छा ही कहा होगा उन्होंने.....
हां, उनका कहना है कि चूंकि आप जैसे लोग निस्वार्थ भाव से, दूसरों को तवारीख़ में जगह दिलाने के लिए काम करते हैं, तो पहली शर्त्त यह है कि आप इस काम से कोई कमाई नहीं करेंगे या फ़िर कमाई करेंगे तो उसमें आपका कोई हिस्सा नहीं होगा, वह कमाई मिर्ज़ा साहब के तय किए लोगों और संस्थाओं में बांटी जाएगी और उसके बारे में किसी क़िस्म की जानकारी आपको नहीं दी जाएगी। क्या आपको मंज़ूर है ?
जी आगे पढ़िए, आगे पढ़िए.....
आगे उनका कहना है कि चूंकि मिर्ज़ा साहब के साथ-साथ आपका भी नाम होगा जबकि आप यह काम निस्वार्थ भाव से कर रहे हैं इसलिए इस काम के प्रदर्शन के दौरान आपका नाम कहीं भी प्रदर्शित नहीं किया जाएगा, अगर नाम प्रदर्शित करना ज़रुरी ही हो तो उसके लिए आपको अलग से पैसा देना होगा जो कि मिर्ज़ा साहब के तय किए लोगों को दिया जाएगा। क्या आपको मंज़ूर है ?
जी आगे पढ़िए, पूरा पढ़िए, मैं सुन रहा हूं......
आगे मिर्ज़ा का कहना है कि बाज़ लोग ज़िंदा फ़नकारों की मौजूदगी में ही उनके काम में फेरबदल कर देते हैं इसलिए पूरे काम के दौरान मिर्ज़ा के तय किए चार आदमी आपके काम पर नज़र रखेंगे। क्या आपको मंज़ूर है ?
जी क्या-क्या कहा है मिर्ज़ा साहब ने.....बेटा ज़रा देखना बाहर.....रिक्शावाला चला तो नहीं गया ? ........
आगे मिर्ज़ा साहब का कहना रहा कि चूंकि इस दुनिया से रुख़्सत हो चुके फ़नकारों की ग़ैरहाज़िरी में उनके बारे में बिना किसी वाज़िब अथॉरिटी की परमिशन के, लोग तोड़-मरोड़ के कुछ भी बना डालते हैं। मिर्ज़ा साहब का कहना है कि मृत्त व्यक्ति की इजाज़त के बिना किए जानेवाले इस शर्मनाक़ सिलसिले पर बैन लगे और इसपर एक सख़्त क़ानून बने, सख़्त सज़ा हो...... जिसके बनाने में आप मदद करें........इसमें यह होगा कि मृत्त फ़नकार का तय किया पैनल जब इजाज़त देगा तभी.........
जी ग़ज़ब-ग़ज़ब की शर्त्तें हैं मिर्ज़ा साहब की, मैं कल वक़्त लेकर आऊंगा और आराम से इनपर बात करुंगा। अभी क्या है कि रिक्शेवाला बेचारा निकल जाएगा.........
जी ज़रुर, कल किस वक़्त आएंगे आप....क्या नाम है आपका, निस्वार्थ साहब ?........
-संजय ग्रोवर
15-07-2015
एक पुराना, कुछ दरमियाना-सा घर।
एक दस्तक।
दरवाज़ा खुलता है-
जी कहिए ?
देखिए हम इस सिलसिले में आए थे मिर्ज़ा मालिक़ के काम पर कुछ काम कर सकें.....उनका नाम और काम भी सलीक़े से दुनिया के सामने आए.....
जी आईए, तशरीफ़ रखिए, क्या लेंगे, ठंडा या गर्म.......
जी बस हम चाहते हैं कि आपकी इजाज़त मिल जाए तो हम जल्द से जल्द काम शुरु करें......
ठीक है, बेटा ज़रा मिर्ज़ा साहब का......
जी अभी लाता हूं.....
देखिए, यह मिर्ज़ा साहब का वसीयतनामा है, उन्होंने परोपकारी और सामाजिक लोगों के लिए कुछ हिदायतें, कुछ शर्त्तें बताई हैं.....
जी हिदायतें! शर्त्तें! ........बताईए, फ़रमाईए....कुछ अच्छा ही कहा होगा उन्होंने.....
हां, उनका कहना है कि चूंकि आप जैसे लोग निस्वार्थ भाव से, दूसरों को तवारीख़ में जगह दिलाने के लिए काम करते हैं, तो पहली शर्त्त यह है कि आप इस काम से कोई कमाई नहीं करेंगे या फ़िर कमाई करेंगे तो उसमें आपका कोई हिस्सा नहीं होगा, वह कमाई मिर्ज़ा साहब के तय किए लोगों और संस्थाओं में बांटी जाएगी और उसके बारे में किसी क़िस्म की जानकारी आपको नहीं दी जाएगी। क्या आपको मंज़ूर है ?
जी आगे पढ़िए, आगे पढ़िए.....
आगे उनका कहना है कि चूंकि मिर्ज़ा साहब के साथ-साथ आपका भी नाम होगा जबकि आप यह काम निस्वार्थ भाव से कर रहे हैं इसलिए इस काम के प्रदर्शन के दौरान आपका नाम कहीं भी प्रदर्शित नहीं किया जाएगा, अगर नाम प्रदर्शित करना ज़रुरी ही हो तो उसके लिए आपको अलग से पैसा देना होगा जो कि मिर्ज़ा साहब के तय किए लोगों को दिया जाएगा। क्या आपको मंज़ूर है ?
जी आगे पढ़िए, पूरा पढ़िए, मैं सुन रहा हूं......
आगे मिर्ज़ा का कहना है कि बाज़ लोग ज़िंदा फ़नकारों की मौजूदगी में ही उनके काम में फेरबदल कर देते हैं इसलिए पूरे काम के दौरान मिर्ज़ा के तय किए चार आदमी आपके काम पर नज़र रखेंगे। क्या आपको मंज़ूर है ?
जी क्या-क्या कहा है मिर्ज़ा साहब ने.....बेटा ज़रा देखना बाहर.....रिक्शावाला चला तो नहीं गया ? ........
आगे मिर्ज़ा साहब का कहना रहा कि चूंकि इस दुनिया से रुख़्सत हो चुके फ़नकारों की ग़ैरहाज़िरी में उनके बारे में बिना किसी वाज़िब अथॉरिटी की परमिशन के, लोग तोड़-मरोड़ के कुछ भी बना डालते हैं। मिर्ज़ा साहब का कहना है कि मृत्त व्यक्ति की इजाज़त के बिना किए जानेवाले इस शर्मनाक़ सिलसिले पर बैन लगे और इसपर एक सख़्त क़ानून बने, सख़्त सज़ा हो...... जिसके बनाने में आप मदद करें........इसमें यह होगा कि मृत्त फ़नकार का तय किया पैनल जब इजाज़त देगा तभी.........
जी ग़ज़ब-ग़ज़ब की शर्त्तें हैं मिर्ज़ा साहब की, मैं कल वक़्त लेकर आऊंगा और आराम से इनपर बात करुंगा। अभी क्या है कि रिक्शेवाला बेचारा निकल जाएगा.........
जी ज़रुर, कल किस वक़्त आएंगे आप....क्या नाम है आपका, निस्वार्थ साहब ?........
-संजय ग्रोवर
15-07-2015
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
निश्चिंत रहें, सिर्फ़ टिप्पणी करने की वजह से आपको पागल नहीं माना जाएगा..