लघुव्यंग्य
ईमानदार आदमी रास्ते से निकल रहा था।
चौक पर बेईमान बैठे थे, आदतन छेड़ने लगे-
‘‘भैय्या क्या मिला ईमानदारी से, ईमानदार तो हम कहलाते हैं, रेडियो-टीवी पे बुलाए जाते हैं, अख़बार हमारे गुन गाते हैं, तमग़े हम पर लगाए जाते हैं.....बोलो-बोलो....
‘न मैं टीवी पर आता हूं न अख़बार में, न तो नाम पाता हूं न ईनाम पाता हूं, न तुम पर ध्यान देता हूं न बदनामी पर......फिर भी ईमानदार हूं.....यही मेरी उपलब्धि है, यही मज़ा है.....तुम इतना ही करके दिखा दो !’
ईमानदार आदमी कहते हुए अपने रास्ते निकल गया।
-संजय ग्रोवर
31-07-2015
ईमानदार आदमी रास्ते से निकल रहा था।
चौक पर बेईमान बैठे थे, आदतन छेड़ने लगे-
‘‘भैय्या क्या मिला ईमानदारी से, ईमानदार तो हम कहलाते हैं, रेडियो-टीवी पे बुलाए जाते हैं, अख़बार हमारे गुन गाते हैं, तमग़े हम पर लगाए जाते हैं.....बोलो-बोलो....
‘न मैं टीवी पर आता हूं न अख़बार में, न तो नाम पाता हूं न ईनाम पाता हूं, न तुम पर ध्यान देता हूं न बदनामी पर......फिर भी ईमानदार हूं.....यही मेरी उपलब्धि है, यही मज़ा है.....तुम इतना ही करके दिखा दो !’
ईमानदार आदमी कहते हुए अपने रास्ते निकल गया।
-संजय ग्रोवर
31-07-2015
ईमानदारी से जो आत्मसंतुष्टि मिलती है वह बेईमान नहीं समझ सकते।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
sahi kaha
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