पज़ल
इधर भी फ़र्ज़ी उधर भी फ़र्ज़ी
सिलते-सिलते थक गए दर्ज़ी
नीचे वाला चमचा बोला
ऊपर वाले तेरी मर्ज़ी
बहरे, मोहरे, चेहरे, दोहरे
टोपें-तोपें गरज़ी-वरज़ी
झूठ ही जीता, झूठ ही हारा
‘सच’ बोला यही मेरी मरज़ी
राज़ छुपाना काम है जिनका
उन्हींको दो पाने की अरज़ी
उनका तो नाटक भी दुख है
मेरी तो बांछे भी लरज़ी
-संजय ग्रोवर
05-10-2016
इधर भी फ़र्ज़ी उधर भी फ़र्ज़ी
सिलते-सिलते थक गए दर्ज़ी
नीचे वाला चमचा बोला
ऊपर वाले तेरी मर्ज़ी
बहरे, मोहरे, चेहरे, दोहरे
टोपें-तोपें गरज़ी-वरज़ी
झूठ ही जीता, झूठ ही हारा
‘सच’ बोला यही मेरी मरज़ी
राज़ छुपाना काम है जिनका
उन्हींको दो पाने की अरज़ी
उनका तो नाटक भी दुख है
मेरी तो बांछे भी लरज़ी
-संजय ग्रोवर
05-10-2016
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
निश्चिंत रहें, सिर्फ़ टिप्पणी करने की वजह से आपको पागल नहीं माना जाएगा..