लघुकथा/व्यंग्य
‘एक बात बताओ यार, गुरु और भगवान में कौन बड़ा है ?’
‘तुम लोग हर वक़्त छोटा-बड़ा क्यों करते रहते हो.....!?’
‘नहीं.....फिर भी .... बताओ तो ....?’
‘गुरु बड़ा है कि छोटा यह बताने की ज़रुरत मैं नहीं समझता पर वह भगवान से ज़्यादा असली ज़रुर है क्यों कि वह वास्तविक है, हर किसीने उसे देखा होता है। किसीको मूर्ख भी बनाना हो तो यह काम उसे(गुरु को) ख़ुद ही करना पड़ता है। भगवान के बस का तो इतना भी नहीं है, वह हो तब तो कुछ करे......’
‘वाह-वाह, क्या बात बताई है, आजसे आप मेरे गुरु हुए......’
‘धत्तेरे की, तुम्हे कुछ तार्किक बात बताने से तो अच्छा है कि आदमी अपना
सर फोड़ कर दिमाग़ नाली में फेंक दे.......’
-संजय ग्रोवर
07-01-2017
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