उनसे मैं बहुत डरता हूं जो वक़्त
पड़ने पर गधे को भी बाप बना लेते हैं। इसमें दो-तीन समस्याएं हैं-
1.
बाप बनना बहुत ज़िम्मेदारी का काम है। ऐसे ज़िम्मेदार बाप का दुनिया को अभी भी इंतेज़ार है
जो सोच-समझ के बच्चा पैदा करे। वैसे जो सोचता-समझता होगा वो क्या बच्चा पैदा करेगा ?
2. फिर
मैं गधा भी नहीं हूं कि किसी भी गधे का बाप बन जाऊं। जो हमारे पिताजी ने नहीं सोचा
वो हम सोच लें तो क्या हर्ज़ है ? सोच के नाम पर हम हमेशा पीछे ही जाते रहेंगे क्या ?
3. सिर्फ बाप बनने के लिए दुनिया-भर के गधों से एडजस्ट करना (एक मुहावरे के अनुसार सबको बाप बनाना) मुझे नुकसान में रहना ही लगता है।
4. सारी
पृथ्वी एक परिवार है, कभी-कभी दूसरों के बच्चों से खेल लेने में हर्ज़ ही क्या है ?
मैं तो जब भी घर से निकलता हूं, दूसरों के बच्चों से ही खेलता हूं। घर में अपने पिताजी
के बच्चे यानि ख़ुदसे खेलता हूं।
5. मुझे
लगता है कि ‘मैं तो अपना ही बच्चा पैदा करुंगा, दूसरे बच्चों को दूसरे बच्चे ही समझूंगा’
यह घमंडी और स्वार्थी होने की पहचान है।
किसीको आपत्ति ?
-संजय ग्रोवर
04-08-2018
आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 8 अगस्त 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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