मंगलवार, 6 फ़रवरी 2018

हम तो हैं इंसान कि हम तो डिप्रेशन में रहते हैं


ग़ज़ल


होगे तुम भगवान कि हम तो फ्रस्ट्रेशन में रहते हैं
हम तो हैं इंसान कि हम तो डिप्रेशन में रहते हैं

तुमने ही भगवान बनाया, तुम्ही खोलने पोल लगे
आपकी हरक़त अपनी हैरत, डिप्रेशन में रहते हैं


हमने सच्ची कोशिश की पर मौक़े पर तुम ले गए श्रेय
सच का यह अपमान हुआ हम डिप्रेशन में रहते हैं

इतनी ऊंच और नीच बनाके तुम्ही कहोगे प्रेम करो !!
तुम्ही करोगे मौज अगर हम डिप्रेशन में रहते हैं !!

बाहर संविधान का पर्दा अंदर सब नाजायज़ खेल
तिसपर बाहर अंदर सारे डिप्रेशन में रहते हैं

ग़म, नफ़रत, अवसाद यही तो सच्चाई का हासिल है
सच बोलो क्यों इंसां अकसर  डिप्रेशन में रहते हैं ?

आपके पागलपन ने हमको इस हालत में पहुंचाया
हम क्या बिलकुल पागल थे जो डिप्रेशन में रहते हैं ?


-संजय ग्रोवर
06-02-2018

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